हास्य-व्यंग्य : पिल्ला पीहर का
यूँ तो जीव-प्रेम के लिए पूरा शहर जे पी को बखूबी जानता था। उन्हें गली-मोहल्ले, यहाँ-वहाँ, कहीं भी कोई खूबसूरत या दु:खी जानवर या पक्षी मिल जाता तो वो उसे घर ले आते और पालते और उसकी देखरेख भी स्वयं जे पी को ही करनी पड़ती, कारण कि उनकी इस आदत से पत्नी बिल्कुल भी सरोकार नहीं रखती थी । इस कारण ना चाहते हुए भी लाये गये जानवर जे पी को कुछ दिन बाद बापस छोड़ कर आने पड़ते । पर कुछ अंतराल के बाद फिर कोई दूसरा मेहमान घर में आ जाता और फिर घरवाली की नाराजगी के कारण उन्हें किसी जान पहचान वाले को देकर आना पड़ता । ये क्रम वर्षों से चला आ रहा था।
पिछले पखवाड़े जे पी को अपने ससुराल जाना पड़ा । वहाँ उन्हें एक सुन्दर सा कुत्ते का पिल्ला पसंद आ गया । ससुराल वाले भी जे पी की इस आदत से बखूबी परिचित थे । बापस आते समय सासु माँ ने ग्यारह सौ रुपये के साथ नारियल की जगह वह पिल्ला भेंट के रूप में प्रदान किया । अपने जीव-प्रेम के संस्कारों के कारण जे पी मना नहीं कर सके और झिझकते झिझकते पिल्ले को ले आये ।
घर में प्रवेश करते ही श्रीमती के प्रश्नों की बौछारों का सामना करना पड़ा पर ये पता चलने पर कि ये पिल्ला अपने घर वालों की कुतिया का है और माँ ने स्पेशल रूप से विदा में दिया है तो अचानक वो बौछारें रुक गयी । और दौड़ कर श्रीमती ने उस पिल्ले को गोद में उठा लिया और चूमने लगी और तुरंत ही चेहरे पर मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा कि ये काम आपने अच्छा किया जो इस पिल्ले को यहाँ ले आये । पर जे पी को इस बात का डर सता रहा था कि कुछ दिनों बाद इसे भी बापस ससुराल पहुँचाना पड़ेगा । पर आज उस पिल्ले को लाये हुए दो महीने हो गये, घर में कोई तू-तू मैं-मैं उसे लेकर बिल्कुल नहीं । पिल्ले से संबंधित सभी कार्य यहाँ तक उसकी पोटी की सफाई भी बड़ी जिम्मेदारी के साथ खुशी खुशी स्वयं श्रीमती कर लेती हैं । पिल्ला जो ठहरा पीहर का…
— व्यग्र पाण्डे