ऊंगली ही तेरी है जो ये हर बार बिकी!
बस! ऊंगली ही ये तेरी!
जो सबको राह दिखाती है!
बस तेरी ऊंगली यही-
हर सरकार बनाती है।
क्यों गिला करते हो तुम ?
क्यों तुम दर्द सुनाते हो ?
तुम ही ऐसे हकीम हो ?
जो हाकिम बनाते हो ?
मंझधार में तू क्यों फंसा ?
तेरी उंगली तो पतवार बनाती है!
इक भीड़ थी कुछ लोग थे!
जो उंगली तेरी टटोल गये!
हर दर्द की दवा मिलेगी!
तेरी ऊंगली से ओ बोल गये!
अब तुमको लगता मैं ठग गया!
ऊंगली तुमको अब कत्थक करवाती है!
इस पर उठाई है उस पर उठाई है!
न जाने ऊंगली किस किस पर उठाई है!
तुमने कब मतदान किया कब अपना सम्मान किया!
बे वजह हर जगह आगे ही ऊंगली किया!
ऊंगली ही तेरी है जो ये हर बार बिकी!
ऊंगली ही तेरी दर-बदर मुजरा करवाती है!
तू स्वार्थी तू चाहता है तुझको कोई नाम मिले
तू हाथ भी बेंच देगा अगर उसके दाम मिले
जमीर से पूंछो जरा निस्वार्थ ये कहां उठी
कौडि़यों में बिकी होगी ये जहां भी उठी
इल्म का कोई मोल नही इस ऊंगली के (राज) में
बिन सोंचे ये उठ गयी तो गुनहगार बनाती है
राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी