कविता

मान है मुझे तुम पर

आन भी हैं तू मान भी हैं तू
हिंदी तू हिंदुस्तान की जान हैं तू
तेरी मीठे शब्दों से कान में घुले हैं रस
तेरी ही बानी बोलते हैं सब
तेरी ही अगुआई में बोलियां हैं कई
तू ही बनी हैं उद्भवन कई भाषाओं की
संस्कृत और अर्धमाग्धी के चरणों में भी तू
उर्दू के जहनी शब्दो को तूने सहलाया हैं
तेरी विलक्षण काया को कईं
भाषा के शब्दों ने सजाया हैं
तेरे  महत्व को सबने समझा अब
सभी भारतवासियों ने भी तुझे नवाजा हैं
तू हैं दिल के लब्ज़ तू ही है मन की आवाज
तेरे होने से बनी रही हैं इस देश की लाज
अपने सर माथे पे धरके तुझे बनाया हैं ताज
कहीं भी रहे हम तुमको भूल न पाएंगे
जो भूले उन्होंने क्या खोई नहीं अपनी पहचान
तू हिंदुस्तान की हैं हिंदी
तू है हमारी ही प्रार्थना और तू ही अजान
रहें तेरी ही संगत में चाहे हो   देश कोई भी
प्रदेशों में भी तू ही हैं संग हमारे
मेरी हिंदी ,मेरी हिंदी तू ही हैं महान,तूही हैं आनबान
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।