जीत
जीत की ललकार है
खून मार रहा उबाल
उठा लो तुम अपनी ढाल
युद्ध का उद्घोष हो
तलवारों में जोश हो
रक्त रंजित धरा क्रोध हुआ प्रचंड
अहंकार अरि का हुआ खंड-खंड
लो! शत्रु का धड़ से अलग हुआ सिर
तलवारें चलती रहीं
मशालें जलती रहीं
युद्ध श्रेत्र में अस्वीकृत तिमिर
जो लड़ा है वही अब खड़ा है
आहुति यहीं अंतिम आधार है
जीत की ललकार है
चित्कारों के शोर ने नहीं खिंचा किसी का ध्यान
घनघोर ध्वनियों के बीच चल रहे तीर-कमान
मौतों पर शपथग्रहण हुई
एक तरफ जश्न का कोलाहल
मल्ल युद्ध ,चतुराई, धुर्तता सब दिखे
जितने को आतुर किसमें कितना बल
गज,अश्व और मानुष
सब भरे विध्वंस हुंकार
भले कुर्बानियां देनी पड़े
नहीं करनी स्वागत हार
पटी भू है सामंत,प्रतापी और शूर
ऐसा मचा था युद्ध
हुए रथ भी चकनाचूर
एक परिवार था आमने-सामने
सभी के हृदय में जड़ों का भार है
जीत की ललकार है
प्रवीण माटी