कविता

मंगल स्वरूप !

मंगल स्वरूप !
अनमोल शुभ्र, धवल वस्त्र, दाग विहीन,
गर दागदार हो चारित्र्य, होता मूल्यहीन,
मानस हो गर प्रिय विरह व्यथा पीड़ित,
सुहाती नहीं पूनम की धवल चांदनी रात।
पावन जलधार सी धवल हो मन पाति,
जलप्रपात सी धवल उजली रूप कांति,
गर कर्म विद्रूप, धर्म भ्रष्ट, आचारविहीन,
मैली सी जीवन गाथा, संस्कारविहीन।
शांति का प्रतीक धवल रंग बहुद्देश,
प्रेम, सौहार्द का दे जगत को संदेश,
इन्द्रधनु से मिलकर बहुरंग नानाविध,
बन जाती रवि किरणेँ धवल उजली धूप।
नमन मां शारदे, वीणावादिनी धवलवस्त्रा वर दे,
मीठी वाणी अमृत सी, तेज धवल निखार दे,
विद्या की देवी, ज्ञान भंडार गागर भर दे,
धवल हिमगिरी सा उज्जवल मंगल स्वरूप दे।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८