दिल सूअर का … (व्यंग्य)
जब भी कोई आज के विज्ञान की उन्नति की बात करता है तो उसकी बात काटने को कोई ना कोई हमारे यहाँ मौजूद मिल ही जाता है और वह बिना रुके, चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन की भाँति एक ही सांस में इतनी बातें उड़ेल देता है कि आज के विज्ञान का विकास सिकुड़ कर कौने में बैठने की स्थिति में आ जाता है । दूरदर्शन-मोबाइल की क्रांति का जवाब वे महाभारत के संजय उवाच: से देते हैं और चिकित्सा-विज्ञान का उत्तर गणेश भगवान की शल्य-चिकित्सा से देने लगते हैं । उनकी कभी ना रुकने वाली गाड़ी युद्ध क्षेत्र की मिसाइलों के संदर्भ पर रावण-कंस आदि महारथियों द्वारा प्रयोग किये गये हथियारों के बारे में बताते हुए नहीं थकती । उन्हें नहीं भाता कि कोई विदेशी विज्ञान की उन्नति का बखान करें । मुझे इस प्रकार के लोगों से वहस करने में सदैव से डर लगता है । माना कि हमारा पुरातन विज्ञान उन्नत था पर आज की दशा को भी स्वीकार करने में क्या हर्ज़ है ।
एक दिन चाय की दुकान पर मैं अखबार पढ़ रहा था कि अचानक अखबार की एक रोचक खबर पर मेरा ध्यान पड़ा- लिखा हुआ था कि ” मैडिकल का कमाल – अमेरिका के मेरी लैंड अस्पताल में दुनियां का अद्भुत प्रत्यारोपण : डाक्टरों ने पहली बार इंसान में धड़का दिया सूअर का दिल । वाकई समाचार ध्यान केंद्रित करने वाला ही था पर मुझे पता नहीं था कि दुकान पर भी कोई उस प्रकार की आत्मा बैठी हुई है और जैसे ही मैं, बिना सोचे समझे उस समाचार को पढ़ने लगा तो समाचार पूरा भी नहीं पढ़ पाया तब तक तो एक सज्जन ने मुझे टोक कर कहा- इसमें ऐसा क्या है जो रस ले-लेकर पढ़ रहे हो जनाब !
ये सब अखबार वालों की कारस्तानी के अंतर्गत ही आता है किसी भी बात को बढ़ा-चँढ़ाकर लिखना, जिससे उनका अखबार बखुबी चलता रहे । इस समाचार में क्या कुछ अलग हटकर लिखा है हमारे यहाँ तो… युगों पहले … जैसे ही वो महाशय आरंभ हुए मैं वहाँ से चल दिया । और घर आकर सोचने लगा तो, ना जाने क्यूँ आज उसकी वो बातें जो मैंने आते- आते सुनी थी ठीक सी लगी और मैं मन ही मन विश्व के उन उन्नत विज्ञान वाले देशों से बात कहने लगा- अरे भाई ! तुमने चिकित्सकीय प्रक्रिया से इंसान के शरीर में सूअर का दिल प्रत्यारोपित करके क्या, तीर मार लिया, हमारे यहाँ तो बहुत से लोग बिना चिकित्सकीय चमत्कार के ही सूअर का दिल प्रत्यारोपित कर यहाँ- वहाँ फिरते सहज नज़र आ जायेंगे । केवल दिल ही नहीं, हमारे यहाँ तो बिन विज्ञान की सहायता के सूअर का मन भी रखते हैं । चलो, सूअर का दिल तो आप लोगों ने कर दिया प्रत्यारोपित । क्या, इंसान में कभी सूअर का मन कर सकोगे प्रत्यारोपित… मुझे लगता असंभव है । माना, अमेरिका वालों, तुमने चलो सूअर का दिल लगाकर किसी इंसान की जान बचाई, हमारे यहाँ तो सूअर का दिल और मन गृहण कर, बहुत से लोग दूसरों की जान लेते भी हैं और बहुतों को प्रताड़ित भी करते हैं । कुछ सीखों हमसे,,,, क्या, शेखी बघारते रहते हो, हमने ये किया हमने वो किया?
सच समझ में और पक्का हो गया कि सूअर के दिल और आदमी के दिल में कहीं न कहीं आकार- प्रकार में समानता होगी जब ही तो विज्ञान सफल रहा उसे प्रत्यारोपित करने में । मैं तो कहता हूँ कि अगर विश्व में, जिन्हें स्वयं के दिल ने साथ देना छोड़ दिया हो या फिर वो खतरे के कगार पर आ गये हो तो उन्हें भारत आ जाना चाहिए । यहाँ चलते-फिरते सूअर के दिल वाले अनेक मिल जायेंगे आकर उन्हें ऐसे लोगों से परामर्श लेकर जान बचाने की कैशलैश युक्ति आजमानी चाहिए । क्यों फालतू में चीर-फाड़ कराई जाये और पैसा लगाया जाये ।
लगता है अब इस समाचार और इस अद्भुत प्रत्यारोपण के बाद सूअरों के दिन फिरने वाले हैं सुअर पालन उद्योग भी अब अवश्य प्रगति करेगा । देखते हैं आज का विज्ञान आने वाले वर्षों में इंसान के लिए किन-किन पशु-पक्षियों के अंग-प्रत्यांगों को प्रत्यारोपित करता है । मुझे शक है कि इंसान को बचाने के चक्कर में और शायद इंसान बचे या नहीं, पर अन्य पशु-पक्षियों के वंश जरूर संपूर्ण नाश की तरफ बढ़ते चले जायेंगे । चलो, आगे आगे देखते हैं होता है क्या …
जय विज्ञान, तेरी जय इंसान ।
— व्यग्र पाण्डे