गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

देखने में इस कदर खुश शक्ल ये तूफान है ।।
नफरतों के फूल लेकर झूमता इन्सान है ।।
आप हैं कितने भले कितने गुणी क्या फायदा..
सर्वगुण सम्पन्न की पैसा ही अब पहचान है ।।
रूप भी तेरा है निर्मल और दिल भी है हँसीन
फिर बता क्यों देख कर आईना तू हैरान है ।।
झूठ की राहों में देखो आज कितनी भीड़ है
सत्य की जानिब गया वो रास्ता सुनसान है ।।
मत उछालो पत्थरों को तुम मेरी जानिब नितान्त..
घर ये मेरा शीशे का है और मुझमें जान है ।
— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश