कविता

गुरूर

गुरूर जब जिन्दा रहता है
मानव उदंड हो जाता    है
गुरूर जब मर जाता     है
सज्जनता की महक छाता है

गुरूर जब मिट जाता है
फलदार तरू झुक जाता है
गुरूर जब मर जाता     है
अहँकार मिट जाता     है

गुरूर जब मिट जाता     है
प्यार की फूल खिल जाता है
गुरूर जब मर जाता       है
चमन में बंसत छा  जाता हे

गुरूर जब मिट जाता       है
अपना पन सा लगता      है
गुरूर जब मर जाता       है
अमन चैन  मिल   जाता।  है

गुरूर जब मिट जाता       है
दुश्मन भी दोस्त बन जाता है
गुरूर जब मर जाता        है
बैर भाव रूठ चला जाता है

गुरूर जब मिट जाता       है
सतरंगी बहार खिल जाता  है
गुरूर जब मर जाता        है
हर शै जमीं पे मुस्कुराता   है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088