मुक्तक/दोहा

हिन्दी माँ

हिन्दी भाषा प्रेम की, सबको प्रेम सिखाय।
सब भावों के राग की, ये ही है पर्याय।।

शब्दों का निज कोष है, वाणी का मधुगान।
हिन्दी बोलो प्रेम से, हिन्दी बड़ी महान।।

सखा भाव सी मैत्री, रखती सबके साथ।
बड़े प्रेम से थामती, सब भाषा का हाथ।

समझे सबकी बात को, करती सबका मान।
हिन्दी भाषा प्रेम की, देती है पहचान।।

शब्दों में रस घोलती, वाणी मधुर मिठास।
भाषा ओ संस्कृति का, होता यहाँ विकास।।

निजभाषा अनमोल है, इसमें प्रेम दुलार।
बिन निजभाषा ज्ञान ये, जीवन लगे न पार।

रोटी खाते हिन्दी की, करते पर गुणगान।
प्रेम विदेशी से करे, घटता माँ का मान।।

बात करें’ सब हिन्दी में, करो सभी संवाद।
हिन्दी भाषा में सभी, होते हैं अनुवाद।।

शब्द शब्द का सार है, वर्ण – वर्ण का भेद।
हिन्दी माँ चन्दरेश के, भाव भरे संवेद।।

— चन्द्रकांता सिवाल “चंद्रेश”

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित