कविता

धारा

 

बहती धारा सबसे कहती

पावन निर्मल बन जाओ 

पानी बरसे धरा न देखे 

रेगिस्तान या परबत हो 

नि:स्वार्थ भाव से सेवा में हैं 

पोखर या फिर पनघट हो 

नाव में बैठे सारे यहाँ 

सब मिलकर पार लगाओ 

बहती धारा सबसे कहती 

पावन निर्मल बन जाओ

भोली-भाली सुरत सबकी

 हम कितनी अनोखी मूरत रब की 

मिलजुल कर है हमको रहना 

वेद पुराणों का यही कहना 

मुख से शांति गीत ही गाओ

बहती धारा सबसे कहती 

पावन निर्मल बन जाओ 

रंग बहुत हैं समाज में अपने 

जीतने साँसे, उतने सपने 

कोई रमता जोगी, कोई है छैला 

दर्द को कोई सहे अकेला 

पास में जाकर, गले लगाकर 

तुम उसकी धीर बंधाओ

बहती धारा सबसे कहती 

पावन निर्मल बन जाओ 

 

प्रवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733