कविता

बदलाव

 

स्वयं में उभरती
हीनता को तोड़ मरोड़
कर जीवन का अर्थ समझ आए
शायद!
इस वजह से कि कोई भी
किसी को उसके अनुकूल
समझता ही नहीं!
दूसरी वजह शायद ये है
कि लोग अपना नजरिया वहीं का वहीं रखतें हैं!
अब मेरा अदृश्य हो जाना
ज्यादा बेहतर रहेगा
शायद जगह बदली जाये
तो थोड़ा हम भी बदलाव लाएं

प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733