जांच
विज्ञान कथा
“अनोखी, आज तुम जहां भी होगी, बहुत खुश होगी. तुम्हारे हंताओं को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है. उसका रसूख भी उसके काम नहीं आया.” पिता के मन की टीस मुखर थी.
“काश! तुमने पहले थोड़ा-सा इशारा कर दिया होता, तो नौबत यहां तक नहीं पहुंच पाती!” अब तो उनका दर्द ही बाकी था और वह भी अकेला.
“मैंने कई बार तुम्हें आदित्य से मिलने को मना भी किया था, पर उसके प्रेम में तुम इतनी पागल थीं, कि तुम्हारे कानों तक मेरी बात पहुंच ही नहीं पाई.” उनकी टीस अब आंसुओं की धार बन गई थी.
“आदित्य के साथ सुरेश से नजदीकियां भी मुझे परेशान कर रही थीं, पर होनी को मेरी परेशानी से क्या मतलब!” आंसुओं की धार झरना बन गई थी.
“तुम्हें तो शिकायत का मौका भी नहीं मिला! शायद किसी जरूरी काम के बहाने सुरेश तुम्हारे पास आया था और थोड़ी देर बाद गोली की आवाज सुनकर पड़ोसियों ने मुझे ऑफिस में फोन करके बताया था. सुरेश को भागते हुए भी लोगों ने देखा था. मेरा तो उस दिन सर्वस्व खो गया था.” पिता का कलेजा छलनी हो रहा था.
“तुम तो मुझे लहूलुहान हालत में मिली थीं. शायद कोई सांस बाकी हो, इस उम्मीद के साथ मैं तुम्हें अस्पताल ले गया था. तुम्हारी सांसों का हिसाब चुकता हो गया था.” शून्य में निहारते-निहारते पिता शून्य हो गए थे.
”उसके बाद जो बात पता चली, वह उससे भी ज्यादा खौफ़नाक थी. तुम्हारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तुम्हारे प्रेग्नेंट होने की बात सामने आई थी. कुछ-कुछ समझ में आया कि तुम्हारी हत्या क्यों की गई थी!”
“अब तो डीएनए जांच भी होनी थी. विज्ञान के बढ़ते शिकंजे में आदित्य कसा गया और उसे दोषी पाया गया. आदित्य के तो कई साथी भी थे, जो उसकी तरह दैत्य, दानव, राक्षस, नाग, सर्प आदि की तरह खतरनाक थे. उन्हीं में से एक था सुरेश.”
“अब सुरेश के साथ आदित्य भी जेल की हवा खा रहा है और उसके साथी दैत्य, दानव, राक्षस, नाग, सर्प आदि अब भी छुट्टे घूम रहे हैं. चिंता मत करना, वे भी पकड़े-जकड़े जाएंगे.”
“तुम तो अब सुरक्षित हाथों में हो, मैं भी अब निश्चिंत हूं. एक तुम्हारी ही तो चिंता थी मुझे, अब किसके लिए चिंता करता फिरूं?”
“निश्चिंत पिता अब निश्चेष्ट भी हो गए थे.” पड़ोसियों ने उस घर में एक और हादसा देखा था, जिसकी जांच होनी थी.