पतझड़
गिरते पत्तों को देख
निराश क्यों होते हो
यह तो पतझड़ है
नियति का लेखा है
ऋतु आयेगी
ऋतु जायेगी
जो पतझड़ न होगा
तो बसंत कैसे आएगा
एक जायेगा
तभी तो दूजा आएगा
पुराना झड़ेगा
नया खिलेगा
यही तो प्रकृति है
तू निराश क्यों होता है
अंधेरे के बाद ही तो सवेरा होता है