धैर्य
जब कभी छाती के
अंदर
धैर्य की चिड़िया
रास्ता भटक जाती है
अधैर्य के बरसाती आसमान में
तब मैं
किसी पुरातन तालाब में
अपना आशियाना पाता हूं
धधकने लगती है जब
आग प्रतिशोध की
तब मैं पत्थर होने की
बजाए
मोम-सा पिघल जाता हूं
आदमी हूँ
जिम्मेवारियों का
बोध लाद कर
आधा ही घर पर आता हूँ
आधे को बिखरने नहीं देता
उसे घर से सुबह निकलकर
हर रोज़ समझाता हूँ
प्रवीण माटी