बोलों में
खामोशियों में
करनी में
भरनी में
स्नेह में
अपनत्व में
पीड़ा में
मोह में
भय में
भीड़ में
तन्हाई में
कहने में
सुनने में
जीत में
हार में
जीवन में
मरण में
कैसे भेदे
कोई छुपे
अर्थ को
कोई क्या कहता है
कोई क्या करता है
कोई क्या पाता है
कोई क्या खोता है
सब है परे
निहित अर्थों में
क्योंकि शब्द, भाव
अक्सर छल सकते हैं
अपने निहित सत्य से
बहुत मुश्किल है भेदना
अर्थ को
छुपे इन भाव , एहसास , शब्द
भंगिमाओं में
जो अक्सर छल जाते हैं बड़ी ही चतुराई से।।
….मीनाक्षी सुकुमारन