धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मकान में वास्तु अनुसार पूजा घर कहाँ और कैसा हो ? 

मकान में पूजा घर होना बहुत आवष्यक होता है। जिस घर में पूजा घर नहीं है वह तीन स्तंभ के मकान जैसा ही है। प्रत्येक व्यक्ति को चौबीस घंटे में से एक बार अपने इष्टदेव का स्मरण करना चाहिए। हर कार्य के लिए एक माहौल, स्थान, आभामण्डल, परिधान सब अनुकूल होना चाहिए। आप किसी सार्वजिनक स्थान पर बने मंदिर आदि पूजा स्थान पर जा पायें या न जा पायें, अपने इष्ट, ईश, भगवान को स्मरण करने के लिए स्वयं के आवास में एक स्थान अवश्य होना चाहिए। जिसे हम पूजा घर या देवस्थान कहते हैं।
यदि नया वास्तु-मकान निर्मित करवा रहे हैं तो उसकी विधिवत् व उचित स्थान पर संयोजना करना चाहिए और यदि पहले से रह रहे हैं या फ्लैट है तो भी उसमें वास्तु अनुसार पूजाघर बना सकते हैं। बहुत परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। निवास-गृह में पूजाघर के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है स्थान चयन। पूजाघर के लिए एकमात्र स्थान ईशान कोण कहा गया है। ईश अर्थात् भगवान्, भगवान् का स्थान। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा के बीच का जो कौना-कार्नर होता है वह ईशान दिशा कहलाती है। यहाँ पूजा घर बनाना चाहिए। यदि नये निर्माण के साथ संयोजना कर रहे हैं तो मिल रहे स्थान के अनुसार पूजाघर बनाना चाहिए। सफेद संगमरमर का मंदिर उत्तम कहा गया है। अधिक स्थान न हो तो बना हुआ पूजा घर बाजार में मिलता है, उसे लाकर स्थापित कर देना चाहिए। संगमरमर का उपलब्ध न हो या आपके बजट में न हो तो लकड़ी का ले लेना चाहिए, वह भी शक्य न हो तो दीवाल में एक पटिया भी लगाया जा सकता है, लेकिन पूजा का स्थान अवश्य होना चाहिए। जहाँ बैठकर आप णमोकार मंत्र, गायत्रीमंत्र आदि पढ़ सकें, दीप लगा सकें।
दिशा निर्धारित हो जाने के बाद सबसे पहला प्रश्न उठता है कि उत्तर-पूर्व के कौने में किस तरफ की दीवाल के सहारे लघु मंदिर की संयोजना करें? किस तरफ भगवान का मुख करें? यह सबसे बड़ी उलझन होती है। प्रायः लोगों को यह ज्ञात होता है कि भगवान का मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर करना चाहिए। इस कौने में मंदिर का मुख पूर्व या उत्तर की ओर करते हैं तो इन दोनों ओर दीवाल है, फिर तो बहुत अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ेगी। इन पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें कि स्वतंत्र मंदिर के भगवान का मुख पूर्व या उत्तर की ओर किया जाता है, किन्तु गृह-मंदिर की संयोजना गृहस्वामी को मुख्यता देकर की जाती है। आवास के पूजाघर का मुख पश्चिम या दक्षिण की ओर होगा। जिससे आराधना करने वाले गृहस्वामी का मुख उत्तर या पूर्व की ओर स्वतः हो जाएगा। एक और समस्या होती है- प्रायः लोग रसोईघर में पूजाघर रखते हैं जिससे अशुद्धि के दिनों में भूलकर भी महिलाएँ पूजा घर तक न पहुँच जायें। इस विषय में दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए- एक तो यदि रसोई घर में पूजाघर रखना ही है तो इसके भी ईशान दिशा अर्थात् उत्तर-पूर्व के कौने में रखना चाहिए, या मकान की ईशान दिशा जिस तरफ हो रसोईघर में उस ओर को पूजास्थान रखें। दूसरा- यदि एक ही बड़ा हॉल है, उसी में रहना, सोना, उठना-बैठना सब होता हो तो उसमें भी ईशानदिशा में पूजाघर बना सकते हैं। पांच दिन अशुद्धि में महिलाओं के रहने के कारण यहाँ शर्त ये रहेगी कि पूजाघर आपकी गर्दन से नीचा नहीं होना चाहिए और पूजा के उपरांत पारदर्शी न हो ऐसे आवरण से ढका रहना चाहिए। एक बात और विशेष ध्यान देने योग्य है- पूजाघर में भगवान को ऐसे विराजमान करें कि उनकी दृष्टि आपके मकान के अधिक से अधिक भाग पर पड़े। अर्थात् जिधर मकान की लम्बाई अधिक हो उस ओर मुख हो। महान का बहुभाग मूर्ति के पीछे नहीं आना चाहिए। मंदिर के पीछे के भी गृहवासी कभी पनप पहीं पाते। पूजाघर के विषय में निम्नांकित अन्य बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए-
1. यदि स्थान हो तो पूजा घर शयन-कक्ष में न बनाएं। 2. यदि बैठकर पूजा करते हैं तो इष्टदेव-मूर्ति की ऊँचाई आपके हृदय के समकक्ष होना चाहिए। खड़े होकर पूजा करते हैं तो कमर से नीचा न हो। 3. मंदिर हमेशा इस तरह से बनाना चाहिए कि पूजा करते समय हमारा मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। आपका मुँह दक्षिण में नहीं होना चाहिए। 4. कुछ लोग पूजा घर में पूर्वजों की तस्वीर भी रख लेते हैं। ऐसा करना अशुभ होता है। भगवान के स्थान पर केवल उनकी ही मूर्ति और फोटो रखें, अन्य तस्वीरों के लिए अलग से स्टैंड रखें। 5. पूजाघर के आसपास, ऊपर या नीचे अपने ही घर का शौचालय वर्जित है। पूजाघर में और इसके आसपास पूर्णतः स्वच्छता तथा शुद्धता होना अनिवार्य है। 6. रसोई घर, शौचालय, पूजाघर एक-दूसरे के पास न बनाएं। 7. घर में सीढ़ियों के नीचे पूजाघर नहीं होना चाहिए। 8. मूर्ति के आमने-सामने पूजा के दौरान कभी नहीं बैठना चाहिए, बल्कि सदैव दाएं कोण में बैठना उत्तम होगा। 9. पूजन कक्ष में मृतात्माओं का चित्र वर्जित है। किसी भी श्रीदेवता की टूटी-फूटी मूर्ति या तस्वीर व सौंदर्य प्रसाधन का सामान, झाडू व अनावश्यक सामान नहीं होना चाहिए। 10. सम्भव हो तो पूजागृह के द्वार पर दहलीज़ ज़रूर बनवानी चाहिए। द्वार पर दरवाज़ा लकड़ी से बने दो पल्लोंवाला हो तो अच्छा होगा। 11. यदि गणेश जी की पूजा करते हैं तो बैठे हुए गणेशजी की  प्रतिमा ही रखनी चाहिए, लक्ष्मी की फोटो भी बैठी हुई हो। 12. जैन घर-पूजागृहों में पंचबालयति तीर्थंकरों की मूर्तियां नहीं रखना चाहिए।
— डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’

डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज

22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, मो. 9826091247 mkjainmanuj@yahoo.com