प्रिय
कदम्ब की डाल बैठ पपीहा कूक रहा
आया वसन्त भॅंवरों का मन डोल रहा
रंग-बिरंगी तितलियों की मुस्कान मनोहर
फूलों का चुरा पराग मधुरुपी हुआ श्रृंगार
चल रही वसंती बयार, हरेभरे खेत झूम रहे
कृषक भर जाएगी झोली, गीत वसंती गा रहे
मन्द – मन्द सुगंध प्रिये की जुल्फें फैला रहीं
सब दिशाएं रंग पीत लेकर यौवनता ला रहीं
फूल उठी कचनार पाकर सुखद संदेश
रातभर रोई चकोरी छोड़ गये प्रिय स्वदेश
बिन प्रीतम के सूना – सूना फाग लगे
मिलन की आस में अखियां रोज जगें
बीतीं मधुमय रातें, छोड़ प्रिय जा बसे परदेश
मन में बसीं सुखमय सरस रसभरी यादें शेष
आया वसंत….. प्रिय तुम भी आ जाओ
कौन लगाये फाग रंग, प्रिय तुम्हीं बताओ
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा