राजनीति

समान नागरिक संहिता कबतक ?

‘संविधान दिवस’, पर सभी अनुच्छेद लागू नहीं ! 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ ‘भारतीय संविधान’, कहने को मात्र 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे, बनने में ! ….किन्तु इसे बनाने में भारतीय विधिवेत्ताओं ने लगभग 25 वर्ष लिये।

मालूम हो, मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास आदि ने स्वराज्य संबंधी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू राष्ट्र को लेकर इसकी रचना में लगे ! परंतु भारतीय नेताओं को जब देश की आजादी की महक लगी, तब प्रायः प्रांतों से हर धर्म, वर्ग, राजा, राय बहादुर, उच्च शिक्षित गणमान्य लोगों की लिस्ट तैयार की गई, संविधान निर्माण को लेकर, जो 500 की संख्या में थी, किन्तु यह संख्या घटी भी, 389 भी हुई।

काफी मेधावी डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को एतदर्थ चुना गया, जो 6/9 दिसंबर 1946 के सम्प्रति ‘संविधान सभा’ के अध्यक्ष रहे । डॉ. भीमराव अंबेडकर को तो ‘संविधान’ के लिए अंतिम रूप में शामिल किया गया था, वह भी दलित वर्ग से आई रिक्तियाँ के कारण !

‘ड्राफ्टिंग कमिटी’ का अध्यक्ष तो बी एन राव का बनना तय था, किन्तु ऐन वक्त में डॉ. अम्बेडकर ने यह बीड़ा उठाया और तब बी एन राव को सचिव बनाया गया था । जिसे अम्बेडकर साहब ने बखूबी निभाए, किन्तु मात्र 72 साल में 100 से ऊपर संविधान संशोधन हो गए !

आज अनुच्छेद- 370 तो हट गया है, किन्तु अनुच्छेद- 343, समान नागरिक संहिता आदि पूरे देश में लागू नहीं हैं, तो अनुच्छेद- 17 के बावजूद सामाजिक विषमता जारी है, क्योंकि यहाँ जो जाति है, वो अब भी जाती नहीं है । वहीं अनुच्छेद- 19 (1) (क) के प्रतिस्थापन के बाद भी हम अपने धर्म, लोक संस्कृति, काल्पनिकता, ऐतिहासिकता इत्यादि पक्ष को लेकर वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कर सकते हैं।

एक तरफ विकास के लिए विज्ञान जरूरी है, परंतु ‘दकियानूसी सोच’ और पाखंड पर अपव्यय को रोक नहीं पा रहे हैं। संविधान में अपने देश का नाम ‘India’ और ‘भारत’ ही उल्लिखित है, अगर अन्यार्थ नाम का उपयोग करते हैं, तो वह भी संवैधानिक हो।

सौ फीसदी संवैधानिक अनुच्छेदों के 70 साल बाद भी लागू न होना हमारी ‘एकता’ और ‘अक्षुण्णता’ को अवैज्ञानिकता लिए तिरोहित करता है। मूल रूप से अंग्रेजी में बना संविधान को हिंदी बहुलता वाले देश में हर घर में हिंदी भाषा में प्रकाशित संविधान को मुफ़्त मुहैया कराई जाए, ताकि हर भारतीय अपने कर्त्तव्य और अधिकारों और कार्यों से यथोचित भाँति परिचित हो सके।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.