धूप
हाँ मैं सूरज की तपती धूप हूँ
प्रकृति का एक स्वरूप हूँ
सूर्यलोक से चलकर आता हूँ
जग को प्रकाशित कर जाता हूँ
गरमी में जब धरा पर आता हूँ
जन जीवन को परेशां कर जाता हूँ
ठंडक ऋतु में जब आता हूँ
जन मानस का दुलारा बन जाता हूँ
बारिस में जब मैं जब आता हूँ
पौधा को नई जीवन दे जाता हूँ
जब शरद ऋतु में आता। हूँ
जन जीवन को बहुत मैं भाता हूँ
मेरे तप से जग जीवन चलता है
हर जीवन को उर्जा गति देता हूँ
रेगिस्तान में जब उतरता हूँ
मृगतृष्णा बन खेल दीखाता हूँ
मेरे उर्जा से जल – चक्र बनता है
मेरे उर्जा से सोलर प्रकाश होता है
मेरे उर्जा से बल्ब मुफ्त जलता है
मेरे ऊर्जा से बरखा धरा पे दिखता है
— उदय किशोर साह