भाती क्यों है
हवा कक्ष में आती क्यों है
इतना भाव दिखाती क्यों है
नहीं गरजना, नहीं बरसना
नभ में बदली छाती क्यों है
छिपकर बैठी है डालों में
मैना मधुरिम गाती क्यों हैं
टूट – टूट जाते हैं सहसा
आशा स्वप्न सजाती क्यों है
कुछ दिन खिली खेत में सरसों
गेंहूँ से इठलाती क्यों है
भाग्य न बदलेगी जनता का
राजनीति बहलाती क्यों है
जीत न पाएगी नौका से
लहर स्वयं टकराती क्यों है
आसपास मड़राती तितली
मुझे देख उड़ जाती क्यों है
नहीं रहा कुछ लेना-देना
बात मित्र की भाती क्यों है
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र