वसंत ऋतु है आने वाली
कूक रही है अमराई में, कोयल काली मतवाली,
शायद कह रही वसंत ऋतु है, शीघ्र ही आने वाली.
पीले-पीले गेंदे के फूलों से, महक रही है बगिया,
वसंत की दस्तक से हिलोरें, लेते सागर-नदिया.
बागों में झूलों पर चहकें, छोटे-छोटे बच्चे,
कहते हम हैं वसंत के रसिया रसीले, भले उम्र के कच्चे.
मात सरस्वती की प्रतिमाएं, सबको खूब लुभाएं,
इनका पूजन करने को ही, ऐसे मौसम आएं.
पहन वसंती बाना जिन वीरों ने, दी हंसकर कुर्बानी,
उनको भूल न जाना हर्गिज़, कहती ऋतु मस्तानी.
बिन पत्तों वाले पेड़ों पर हैं, नई कोंपले आईं,
इनकी ताज़गी से चेहरों पर, और बहारें छाईं.
अब तक सूरज से कहते थे हम, दादा तेज़ दिखाओ,
अब दादाजी कहते बैठो, देखें कितना दम है आज़माओ.
चारों ओर नज़र आते हैं, कितने प्यारे नज़ारे,
इस ऋतु पर जाते हैं वारी , सूरज-चांद-सितारे.
शुरु हो गए मेले-ठेले, निकले घर से सारे,
कितने प्यारे नज़राने ले, नज़रें देखें नज़ारे.
कंबल-हीटर रूठ के कहते, अब हमको छोड़ोगे,
फिर भी अपने दिन आएंगे, कब तक मुंहं मोड़ोगे?
वसंत पंचमी सूचित करती, ऋतु वासंती आई,
वरना कब आती-जाती है ये ऋतु, देती नहीं दिखाई.