गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

एक अरसा हुआ दिल दुखाए हुए
ज़ख्मी दिल पर मरहम लगाए हुए।

डूब जाने दे मांझी मेरी नाव को
हम हैं गम के भवर में समाए हुए।

वो क्या जाने चहरे पे पर्दा है क्यों
ग़म की तहरीर हैं हम छुपाए हुए।

हर घड़ी दिल परेशान हैं सोचकर
क्यो याद आता है है जो भुलाए हुए।

आज दुनिया ही दिल की वीरान है
जो अपने थे वो भी अब पराए हुए।

आंखें नम हैं जानिब जुबां खामोश है
कितने दिन हो गए हैं मुस्कराए हुए ।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर