कविता

किरदार

 

 

किरदारों की गहमागहमी, किरदारों की बात

मंच पर कोई है अंधा ,किसी का नहीं है हाथ

 

संवेदनाओं का सैलाब उठा है

जिसके ऊपर ब्रह्मांड टिका है

दिखाऊं कैसे अब सबको मैं

वो भूले बिसरे अनझूये हालात

 

किरदारों की गहमागहमी, किरदारों की बात

मंच पर कोई है अंधा ,किसी का नहीं है हाथ

 

मैं अकेला, तू अकेला अकेली जीवन की बाती

कोई नहीं जाता अंत तक, सब झूठे हैं बाराती

मोह माया सब क्या-क्या साथ लेकर जाओगे

कदमों के निशां मिट जाएंगे झूठा हर एक साथी

भीड़ खड़ी है विरोध में मेरे, लेकर अपने जज्बात

 

किरदारों की गहमागहमी, किरदारों की बात

मंच पर कोई है अंधा ,किसी का नहीं है हाथ

 

हाथ की लकीरों में भाग्य कहां है

इतना बड़ा कहां तक ये जहां है

जो आया था वह जाएगा सच है

अमर अब तक यहां कौन रहा है?

दिन में कितना जी लोगे तुम!

याद रख आएगी फिर भी रात

 

किरदारों की गहमागहमी, किरदारों की बात

मंच पर कोई है अंधा ,किसी का नहीं है हाथ

 

प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733