कविता

एहसास

इजाज़त दे दो अब तो एक एहसास की
जो तुम्हें बड़ी मुद्दतों से पाया है
अफसानों में हम छाये हैं
जज्बातों के
जहन में जो तू छाया है
न जाने किस काफिले से चुना है खुदा ने तुझे
जो गुजरता है बेगाने गलियारों से
मगर पता लग जाता है मुझे
ख्वाबों के मंजर में
तू दिलचस्प बात
और बेहतरीन नगमें सुनाता है
मेरी तो रूह भी रजामंद है
तेरा होने में
तू ही तो वो खुबसुरत एहसास जगाता है

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733