ओ वसंत के राही
ओ वसंत के राही मस्त हो, पतझड़ को तुम भूल न जाना,
पतझड़ के पलने में पलकर, यह वसंत आ पाया है.
पतझड़ के कष्टों में भी खुश, रहना इसने सिखाया है,
धैर्य से समय का इंतजार कर, जीवित यह रह पाया है.
इन कष्टों से घबराकर भी, पतझड़ को वह रोक न पाता,
इसीलिए सुंदर रंगों से, रूप वसंत ने सजाया है.
जब तक पात पुराने न झड़ते, नव किसलय कैसे आ पाते!
उन्हीं पुरातन पत्तों पर चल, नव वसंत खिल पाया है.
रति ने फूलों के गहने पहने, मादकता की आभा है,
कुसुम-धनुष ले कामदेव ने, तीन लोक को नापा है.
नवल प्रेम का परचम लेकर, फिर वसंत लहराया है,
प्रेम-संदेशा धरा-गगन को, देकर यह हर्षाया है.
शीतल-मंद-सुगंधित वायु, ले यह मौसम आया है,
फूली सरसों, सुमन खिले पर, वसंत नहीं इतराया है.
पतझड़ के पलने में पलकर, ऋतु वसंत ने आना है,
ओ वसंत के राही मस्त हो, पतझड़ को नहीं भुलाना है.
आज 5 फरवरी बसंत पंचमी का पावन पर्व है. इस दिन माता सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है. इसके पीछे मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती प्रकट हुई थीं. यही कारण है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत पंचमी से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहनना शुभ माना जाता है. बसंत पंचमी वीरों के अभिनंदन दिवस के रूप में भी मनाई जाती है.