सरस्वती-वंदना
मातु शारदे,नमन् कर रहा,तेरा नित अभिनंदन है।
ज्ञान की देवी,हंसवाहिनी,तू माथे का चंदन है ।।
अक्षर जन्मा है तुझसे ही,
तुझसे ही सुर बिखरे हैं
वाणी तूने ही दी सबको,
चेतन-जड़ सब निखरे हैं
दो विवेक और नवल चेतना,तेरा तो अभिनंदन है ।
ज्ञान की देवी,हंसवाहिनी,तू माथे का चंदन है ।।
कर दे तीक्ष्ण कलम तू मेरी,
चिंतन को नव सार दे
सत्कर्मों का पथ भाये बस,
ऐसा तू उजियार दे
अंतर्मन हो पूर्ण शांत माँ,शेष रहे ना क्रंदन है ।
ज्ञान की देवी,हंसवाहिनी,तू माथे का चंदन है ।।
जीवन में हो नवल ताज़गी,
करनी में अपनापन हो
फूल खिलें हर पल,हर पग में,
रिमझिम करता सावन हो
उर में तो नित प्रेम-नेह हो,काया मानो मधुवन है ।
ज्ञान की देवी,हंसवाहिनी,तू माथे का चंदन है ।।
— प्रो. शरद नारायण खरे