पारिवारिक एकता के छन्द
(1)
प्रेम की बगिया विहँसती,तब खिले परिवार।
प्यार से परिवार में नित,नेहमय रसधार।।
मन रहे निर्मल अगर तो,हाथ में वरदान।
एकता की भावना की,नित प्रखरतम शान।।
(2)
पारिवारिक एकता पर,देवता बलिहार।
आपसी अनुराग में ही,तो समाहित सार।।
फूट से यदि दूर हैं सब,तब पराजित शोक।
आपसी चाहत सजाती,नित्य ही यह लोक।।
(3)
जब रहे अपनत्व परिजन,प्रेम से भरपूर।
हर खुशी में साथ हैं सब,हर कपट नित दूर।।
काम हो कैसा कठिन भी,पर खरा परिवार।
नित तरक्की संग रहती, साथ है उपहार।।
(4)
जब सभी के दिल मिले तब,नेह की बरसात।
जगमगाते दिन मिलेंगे,पूर्णिमा सम रात।।
जब सभी जन साथ में तब,गूँजता यशगान।
काम बन जाते बिगड़ते,जग करे गुणगान।।
(5)
जब सभी जन प्रेममय हों,तो सधे हर बात।
त्याग हर दिल में भरा हो,तब खिलें जलगात।।
एक-दूजे के लिए ही,जब जिए परिवार।
तब मिले परिवार को यश,नित नवल अधिकार।।
(6)
मातु-पितु का मान हो जब,तब सुवासित फूल।
अनुज-अनुजा प्रीतिमय हों,दूर हों सब शूल।।
नेह-डोरी में बँधे सब,पूर्ण हो हर काम।
हर घड़ी बनना सदा तय,एक तीरथधाम ।।
(7)
हो दिलों में प्यार जब तब,खुश रहे परिवार।
एकता से सब रहें जब,तब पले नित सार।।
काम मिल-जुलकर करें जब,हो सुभाषित हाथ।
नित रहे परिवार सुखमय,हर्ष हो तब साथ।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे