मां उज्ज्वल प्रकाश
मां कुछ दिवस और रहकर जाती।
कुछ तो मुझसे तुम कहकर जाती।।
माया पट बांच अबोले मुझसे।
प्रकृति-पुरुष रहस्य खोले मुझसे।
जीवन के कठिन पलों में तुमने,
ममता-रस अनुपम घोले मुझसे।।
निर्मल जल सा था जीवन तेरा,
क्यों बांध गयी उर, बहकर जाती।।
सभी पर सदा करुणा बरसाई।
समता ममता नेह निधि लुटाई।
तम-कारा में उज्ज्वल प्रकाश तुम,
दुखी मनुज मन की पीर मिटाई।
झंझावात सहे अविचल तुमने,
ताप खुशियों का भी सहकर जाती।।
— प्रमोद दीक्षित मलय