कविता

मां उज्ज्वल प्रकाश

मां कुछ दिवस और रहकर जाती।
कुछ तो मुझसे तुम कहकर जाती।।
माया पट बांच अबोले मुझसे।
प्रकृति-पुरुष रहस्य खोले मुझसे।
जीवन के कठिन पलों में तुमने,
ममता-रस अनुपम घोले मुझसे।।
निर्मल जल सा था जीवन तेरा,
क्यों बांध गयी उर, बहकर जाती।।
सभी पर सदा करुणा बरसाई।
समता ममता नेह निधि लुटाई।
तम-कारा में उज्ज्वल प्रकाश तुम,
दुखी मनुज मन की पीर मिटाई।
झंझावात सहे अविचल तुमने,
ताप खुशियों का भी सहकर जाती।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com