कविता

विचलित करता है ये सवाल

बेहद विचलित करता है
ये सवाल अक्सर आखिर
कैसी जीवन शैली है ये
आखिर कैसे एक हंसती,
खेलती , चलती , फिरती
बोलती, चहकती ज़िन्दगी
अचानक से बस एक तस्वीर
बन कर रह जाती है
छोड़ बस अपनी यादें और छाप
जब भी कोई अपना या
परिचित चला जाता है
छोड़कर यही सवाल कौंधता
रहता है मन में
क्या है ये , क्यों है ये
एक झटका दिल का या दिमाग का ,
एक्सीडेंट या बीमारी कोई
और साथ झोड़ देता है शरीर
समा बस स्मृतियों में बन मौन तस्वीर
कैसी शैली है ये जीवन की
अजीब सी
कभी भी कैसे भी बस आ
दबोचती है मृत्यु दबे पांव
बड़ी ही खामोशी से
और सब सिमट जाता है
एक तस्वीर और उस पर
माला में
और कुछ बेसुध बिस्तर पर
पड़े लाचार करते रहते हैं
निवेदन मुक्ति को रोज़ तकते
राह नीरस आंखों से कब हों
मुक्त इस शरीर से जो
बस पड़ा है नाम भर को
 न चलने फिरने उठने बैठने
खाने पीने लायक बस
चलती रुकती साँसें और
धड़कनें तरसती मुक्ति को ।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |