कविता

तुम बिन सूना है जग सारा

तुम बिन सूना सूना जग सारा
तुम बिन सूना जीवन  हमारा
याद तेरी रात दिन आती    है
आते जाते तेरी याद सताती  है

तुम बिन सूना सूना जग सारा
नभ का सूरज चाँद व  सितारा
कोयलिया है अश्क    बहाती
गुम सुम पपीहा नजर है आती

तुम बिन सूना सूना जग सारा
बगिया की कलियॉ चुप सारा
फिजां में पतझड़ का मंजर है
शांत बैठा अब समन्दर      है

तुम बिन सूना सूना जग सारा
डाली पर बैठी चिड़ियाँ  सारा
चहकना भूल गई डाली पर
खुशियाँ रूठ गई चेहरे   पर

तुम बिन सूना सूना जग सारा
नदियाँ रोती छूकर दो किनारा
बीच भँवर में उथल पुथल है
दिल की यहाँ तुफान प्रबल है

तुम बिन सूना सूना जग सारा
बदल गया मौसम का नजारा
सब कुछ यहाँ ठहर गया है
जाम की सरूर सिहर गया है I

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088