यहीं हो तुम
अम्मा यह सच है कि
तुम नहीं हो मेरे साथ
अब सदेह साकार
त्याग कर स्थूल काया
हो गयी हो सूक्ष्म निर्विकार।
पर महसूसता हूं मैं बार-बार
तुम्हारे कोमल हाथों का स्पर्श
निर्मल जल और मलय बयार में
तितलियों के नित्य नर्तन
और भौंरों के गुंजार में।
तुम ही तो दिखती हो
बच्चों की मुस्कान में
पंछियों की उड़ान और
नित नवल विहान में।
तुम्हीं तो समाहित हो
पुष्पों की खिलखिलाहट में
चिड़ियों की चहचहाहट में
शुभ्र रजत चांदनी में
गीत, संगीत रागिनी में
बारिश की बूंदों में
श्यामल घन दामिनी में।
वसुधा के कण-कण में
तुम्हारी ही सुगंध है बसी
तुम लोक में बिखर गयी हो
जैसे बिखरती है प्रकृति में
मृदुल चांदनी और प्रकाश
तुम कहीं नहीं गयी हो
यहीं हो मुझमें, मेरे आसपास।
— प्रमोद दीक्षित मलय