कविता

यहीं हो तुम

अम्मा यह सच है कि
तुम नहीं हो मेरे साथ
अब सदेह साकार
त्याग कर स्थूल काया
हो गयी हो सूक्ष्म निर्विकार।
पर महसूसता हूं मैं बार-बार
तुम्हारे कोमल हाथों का स्पर्श
निर्मल जल और मलय बयार में
तितलियों के नित्य नर्तन
और भौंरों के गुंजार में।
तुम ही तो दिखती हो
बच्चों की मुस्कान में
पंछियों की उड़ान और
नित नवल विहान में।
तुम्हीं तो समाहित हो
पुष्पों की खिलखिलाहट में
चिड़ियों की चहचहाहट में
शुभ्र रजत चांदनी में
गीत, संगीत रागिनी में
बारिश की बूंदों में
श्यामल घन दामिनी में।
वसुधा के कण-कण में
तुम्हारी ही सुगंध है बसी
तुम लोक में बिखर गयी हो
जैसे बिखरती है प्रकृति में
मृदुल चांदनी और प्रकाश
तुम कहीं नहीं गयी हो
यहीं हो मुझमें, मेरे आसपास।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com