राजनीति

राष्ट्रीयता के विरुद्ध कांग्रेस

एक समय स्वतंत्रता की बागडोर संभालने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब राष्ट्रीय विचारों से विलग जा रही है। इसका कारण अपरिपक्व नेतृत्व के हाथ में देश की सबसे बड़ी विपक्ष पार्टी की कमान जाना है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत और राष्ट्रीयता विषय पर अपनी मूक बुद्धि से आपत्तिजनक बयान जारी किए। समझने वाली बात है कि इनके इस बयान से इनका अनुसरण करने वाले लोग राष्ट्र और राष्ट्रीयता में भेद करने लगेंगे। जहां देश एक राजनीतिक व भौगोलिक इकाई है जिसकी सीमाएं होती है व व्यवस्था एक संविधान से चलती है, वहीं राष्ट्र एक सांस्कृतिक संकल्पना है जो संस्कृति, आस्थाओं, साझा इतिहास व सभ्यता के गौरव को आधार बनाकर उस राजनीतिक इकाई को मजबूती प्रदान करती है। राष्ट्रीय चेतना के अभाव में हमने देशों की सीमाओं और संस्कृतियों को बदलते देखा है।

संविधान में भारत को राज्यों का संघ राष्ट्र की संकल्पना को मजबूती देने के लिए दिया गया, न कि भारत की व्याख्या को ढीले ढाले ढंग से प्रस्तुत करने के लिए जिस उद्देश्य से राहुल गांधी ने इस शब्द का प्रयोग किया। भारत एक सांस्कृतिक विरासत को लेकर बना है, भारत गुलाम अवश्य हुआ, परन्तु अपनी संस्कृति व मान्यताओं से कभी कोई समझौता नही किया, मुगल काल के अंधकार में भी भारत ने अपनी राष्ट्रीय संस्कृति को अक्षुण रखा।

जब भी किसी व्यक्ति द्वारा कोई वक्तव्य दिया जाता है तो यह उसके वैचारिक स्तर को प्रदर्शित करता है किंतु कांग्रेस के तथाकथित राजकुमार बार बार अनावश्यक विषयों पर अपने अल्पविकसित मस्तिष्क से देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे है। क्या कभी राहुल गांधी को अखंड भारत पर बात करते सुना ? क्या कभी इन्होंने अन्य देशों में पीड़ित भारतीय मूल के लोगों की बात की ?

यह पहला अवसर नही है, राफेल समझौते, पुलवामा हमले, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, चीन विवाद पर भी कांग्रेस के स्वर दुश्मन देशों से मिलते हुए दिखाई दिए। अब यह जानना आवश्यक है कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी दल किस दिशा में जा रहा है ? क्या कांग्रेस को चिंतन नही करना चाहिए ? अपनी भ्रमित होती विचारधारा और अकुशल नेतृत्व के दम पर आखिर कब तक देश को भ्रमित करेंगे ? अब इस पर विराम लगना चाहिए।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश