लक्ष्य-गीत
असफलता है एक चुनौती,दो-दो वार करो।
फैला चारों ओर अँधेरा,पर तुम लक्ष्य वरो।।
साहस लेकर,संग आत्मबल बढ़ना ही होगा
जो भी बाधाएँ राहों में,लड़ना ही होगा
काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं
जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं
मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो।
फैला चारों ओर अँधेरा,पर तुम लक्ष्य वरो।।
असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है
सब कुछ होना,इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है
असफलता से एक नया,सूरज हरसाता है
रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है
चीर आज कोहरे को मानव,तुम उजियार करो।
फैला चारों ओर अँधेरा,पर तुम लक्ष्य वरो।।
भारी बोझ लिए देखो तुम,चींटी बढ़ती जाती है
एक गिलहरी हो छोटी पर,ज़िद पर अड़ती जाती है
हार मिलेगी,तभी जीत की राहें मिल पाएँगी
और सफलता की मोहक-सी बाँहें खिल पाएँगी
अंतर्मन में प्रवल वेग ले,नित जयकार करो।
फैला चारों ओर अँधेरा,पर तुम लक्ष्य वरो।।
— प्रो.(डॉ.) शरद नारायण खरे