कविता

नारी

नारी तुम शक्ति हो
तुम ही सृष्टि कर्ता हो
अनेक रूप होते हैं नारी
माँ बनकर बच्चों को
देती है उनको संस्कार
बहन बनकर करती
भाई का आदर सम्मान
पत्नी बनकर निभाती हो
सारे फर्ज और कर्तव्य
फिर भी सबके ताने सुनती
दूसरों के हिसाब से चलती
किंतु उफ्फ तक नहीँ करती
बिंदी कुमकुम महेंदी हो तुम
फिर भी दहेज की बलि चढती हो
दुख वेदना  कैसे सह लेती हो तुम
माँ , बहन, पत्नी बनकर
हर कर्तव्य फर्ज निभाया तुमने
बचपन में सिखाया जाता है
ऐसा वैसा मत करो
तुम्हें दूसरे के घर जाना है
किंतने बंधन में रहती हो तुम
अपनी सारी पसन्द भूल गयी
दूसरों पर आश्रित रहती हो तुम
घर का वंश चलाने वाली
यहाँ नहीं जाना वहां नहीँ जाना
फिर भी कुछ नहीँ बोलती हो तुम
 तुम श्रद्धा और सृष्टि कर्ता हो
 नारी तुम शक्ति हो
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश