रबर नेति और जल नेति
नेति क्रिया यौगिक षट्कर्मों के अन्तर्गत एक प्रमुख क्रिया है। इस क्रिया के करने से नजला-जुकाम, कफ, सायनोसाइटिस, अनिद्रा, चेहरे के पक्षाघात, मस्तिष्क में जाने वाले रक्त की शुद्धि आदि लाभ प्राप्त होते हैं। इस शोधन क्रिया के बाद नासिका मार्ग पुरी तरह से शुद्ध हो जाता है तथा प्राणवायु पूरी मात्रा में शरीर में पहुँचने लगती है।
नेति क्रिया कई प्रकार की होती है जैसे रबर नेति या सूत्र नेति, जल नेति, दुग्ध नेति, घृत नेति, तेल नेति आदि। लेकिन यह मुख्यत दो प्रकार से की जाती है- रबर नेति और जल नेति। शुरुआत में रबर नेति की जाती है। एक बहुत ही सुलभ व आसानी से प्राप्त होने वाली नेति है। यह रबर की एक पतली सी नली होती है, जो सर्जीकल स्टोरों पर कैथेटर के नाम से मिल जाती है। इसका एक सिरा गोल होकर बंद होता है तथा दूसरा सिरा खुला होता है। शुरू में पतली यानी 3 नम्बर की नेति करनी चाहिए, फिर आवश्यकता के अनुसार क्रमशः 4 और 5 नम्बर की मोटी नेति की जा सकती है। यदि आप चाहें तो इसकी जगह सूत्र नेति कर सकते हैं, जो प्रमुख प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों पर मिल जाती है।
रबर नेति करने के लिए पंजों के बल (कागासन में) बैठ जाएँ। एक लोटे में थोडा गुनगुना पानी रखें। अब रबर नेति को गर्म पानी में धोकर आवश्यक होने पर जरा सा सरसों का तेल लगाकर बंद सिरे की ओर से धीरे-धीरे नासिका के एक द्वार से अंदर प्रविष्ट करें और जब वह गले में पहुँच जाये तो तर्जनी व मध्यमा उँगलियों के द्वारा पकड़कर मुख के अंदर से बाहर निकाल लें। फिर दोनों सिरे पकड़कर आगे-पीछे चलाते हुए दूध बिलोने जैसी क्रिया करें। इसी को नेति करना कहते हैं। इसमें जो कफ निकल रहा हो उसे निकल जाने दें।
दो-तीन मिनट तक चलने के बाद नेति को मुख की ओर से खींचकर बाहर निकाल लें और पानी से धो लें। उसी प्रकार दूसरे नासिका द्वार से भी करें। आवश्यक होने पर इसे शाम को भी किया जा सकता है।
इस क्रिया को धीरे-धीरे करें क्योंकि नासिका के अंदर गुलाब की पंखुड़ी जैसा कोमल मार्ग है। कभी कभी रबर नेति करने से नाक से खून निकल आता है। यह कोई घबराने की बात नहीं है। रात को सोते समय दोनों नासिका छिद्रों में बादाम रोगन, सरसों का तेल या गाय का घी डालने से खून आना बंद हो जाता है और नेति का पूरा लाभ मिलता है। इसे घृत नेति कहा जाता है।
जल नेति में एक टोंटीदार लोटा लिया जाता है, जो बाजार में मिल जाता है। इस लोटे में गुनगुना जल भरा जाता है और उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाया जा सकता है। नेति करने के लिए कागासन में बैठकर लोटे को बायीं हथेली पर रखकर सिर को दायीं ओर झुकाकर लोटे की टोंटी को बायें नथुने में लगाया जाता है। अब लोटे को धीरे-धीरे इस तरह उठाया और झुकाया जाता है कि पानी बायें नथुने से अन्दर जाकर दायें नथुने से निकलना प्रारम्भ हो जाता है। धीरे धीरे पूरा लोटा खाली कर दिया जाता है।
फिर इसी तरह दायें नथुने पर लोटे की टोंटी लगाकर बायें नथुने से जल निकाला जाता है। जल नेति करते समय यह ध्यान रहे कि साँस केवल मुँह से लेनी चाहिए, नहीं तो सिर में पानी चढ़ जाएगा, जो कष्ट देगा।
जल नेति करने से प्रायः नाक में पानी भर जाता है। उसे सामने झुककर सिर को इधर उधर झुकाते हुए नाक साफ करनी चाहिए। इससे अधिकांश पानी निकल जाता है। बचे हुए पानी को सुखाने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम अवश्य करना चाहिए, जिसकी चर्चा आगे की जाएगी।
जल नेति से भी प्रायः वही लाभ होते हैं जो रबर या सूत्र नेति से होते हैं। लेकिन सुविधा के लिए पहले सूत्र या रबर नेति करके फिर जल नेति और तत्पश्चात् भस्त्रिका करना चाहिए।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल