एक गुलाब
एक गुलाब का फूल चमन में
काँटों के बीच पला बढ़ा
काँटों के संगत में रहकर
अपनी स्वभाव पे अड़ा खड़ा
काँटा कभी ना सिखला पाया
अपनी छाप ना दिला पाया
लाख मुसीबत चमन में आया
प्रकृति का सदा आदर पाया
देवों के मस्तक पर भी चढ़कर
अहंकार उन्हे ना छु पाया
अपनी खुशबू जग में महकाकर
गुलशन का है गौरव बढ़ाया
एक पैगाम जग को है देकर
संसार को है वो समइाया
कठिन परिस्थिति में भी जीना
राह भले कीलों सा आये
लाख बुराई पड़ोस सिखलापे
आपनी प्रकृति सहेज कर रखो
दुर्जन के संग भी गर है जीना
अपनी गुण अक्षुण्ण सा रखो
कुमित्र कितना भी रंग जमा ले
सज्जनता पर कोई प्रभाव ना होता
जो हित काम आये मानव का
जग में वो सज्जन है कहलाता
— उदय किशोर साह