बिना मुहूर्त के विवाह
साधारणतया ब्राह्मणों में मुहूर्त के अनुसार ही विवाह किया जाता है। वर और वधु पक्ष वाले अच्छा सा मुहूर्त निकलवा कर ही विवाह करते हैं। बहुत ऐसे ही बिना मुहूर्त के विवाह सफल होते हैं। हमारे के एक बहुत घनिष्ठ मित्र जो मेरे छोटे भाई की ही तरह हैं, उन्होंने अपना विवाह करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में रात को 9:30 बजे हमारे घर आए और कहा कि बड़ी भूख लगी है जो कुछ भी बना हो दे दो। हम उनके इस व्यवहार से बड़े आश्चर्य में थे और कहा कि थोड़ी देर में खाना बन जाएगा और खा लेना।परन्तु उन्होंने फ्रिज जो कुछ खाने की इच्छा हुआ ले लिया। ऐसा आत्मीय था उनका व्यवहार।
उन्होंने कहा “इस समय मैं बहुत शीघ्रता में हूं, आप मेरी सहायता करें।” शीघ्रता का कारण पूछने पर कहने लगे कि सवेरे की पहली बस से कुल्लु जाना है और वहां एक लड़की जो पिछले चार वर्ष से मेरी प्रतीक्षा में है और अब मैं और नहीं रुक सकता इसलिए विवाह के लिए जाना है। मैं और मेरी पत्नी बड़ी सोच में पड़ गए। उन्होंने कहा ” मुझे दो जोड़ी ( पैंट , कमीज, बनियान और अंडवीयर) तथा कुछ कैश चाहिए।” कपड़े तो मेरे माप के ही थे। उस समय घर में 200 रुपए ही थे। सभी कुछ तैयार कर दिया और रात को वह हमारे पास ही ठहरे। सवेरे 3 बजे ही जाने को तैयार हो गए। नाश्ता किया और मैंने उन्हें शिमला बस अड्डे तक छोड़कर आने के लिए कहा परंतु वह अकेले ही चले गए। हमने शुभकामनायें दीं।
वहां उसी दिन शाम को ही लड़की वालों को कहा कि कल को विवाह कर दें, मुहूर्त निकलता है पता कर लो और परसों को हमने विवाह के बाद शिमला वापस चले जाना है। लड़की वालों ने सोचा कि लड़का पी एच डी अमेरिका से है, इस समय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है, उनके जान पहचान वालों में से है और लड़की भी मान रही है, इसलिए अगले दिन दौड़-धूप कर विवाह कर दिया। उस दिन अचानक वहां मशोबरा से दो अधिकारी और वाहन चालक भी कुल्लू में मिल गए और वह बाराती बन गए। विवाह ठीक प्रकार से हो गया।
अगले दिन प्रातः कुल्लु से विदा होकर शिमला टैक्सी में हमारे घर शाम को पहुंच गए। हमारे ही घर में उनका वधु प्रवेश हुआ। शगुन और कपड़े तथा कुछ कैश भेंट किया। बच्चों से बातचीत हुई और चायपान के बाद वे मशोबरा चले गए। सब कुछ ठीक हो गया था।
उनके पिता जी हमारे से 2 वर्ष नाराज़ रहे क्योंकि वह कुल्लू से विवाह नहीं करना चाहते थे और इधर से ही चाहते थे। उन्हें लग रहा था कि हमने ही उसे विवाह के लिए भेजा है।उनके विचार में कुल्लू की औरतें जादूगर होती हैं। बाद में उनके पिता जो पहले की तरह ही हमारे घर आने लगे।अब डॉक्टर शर्मा ने हमारे घर के पास ही संजौली में शिफ्ट कर लिया और फिर चौक में अपना ही घर बनवा लिया और बाद में अमेरिका चले गए। बच्चे यहीं रहे। डॉक्टर साहब ने अपनी बेटियों के नाम हमारी बेटी से मिलते जुलते रखे और दोनों का चैलसी स्कूल में प्रवेश के लिए मुझे ही जाना था। उनकी बड़ी बेटी हमारी बेटी के विवाह में उसके साथ बैस्ट गर्ल की तरह रही। बेटा बी सी एस से पढ़ा है।और अब सभी विदेश में रह रहे हैं परन्तु संपर्क में हैं। 48 वर्ष तक तो बहुत सफल विवाह रहा है।