कविता

वसंत संयोग नहीं

वसंत एक दिन का नहीं
कई सप्ताहों का
महीनों का होता है
वसंत पंचमी तो
शुभ मुहूर्त है
परिवर्तन का
सौन्दर्य के नर्तन का
पेड़ों से पत्तों का झड़ना
फिर नवीन चोला गढ़ना
आमों में बोर के आने तक
कोयल के झुरमुटों में गाने तक
समय है इसका
ये ॠतु ही नहीं
उत्सव है प्रकृति का
ये श्रृंगार है विचार है
धरा की आकृति का
हृदयों में प्रेम की कृति का
वसंत संयोग नहीं
एक प्रयोग है
उस अनंत का…
जो जब मुस्कराता है
तो बिखर जाता है
वसंत फूल बनकर
बस ये ही संसार को
अबतक समझ आया
सच है अपने बल पर
वसंत ‘ॠतुराज’ कहलाया

– व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201