कविता

तुम बिन

तुम बिन मैं ने जीना सीख लिया है
अकेले लड़ना झगड़ना ही नहीं
मुश्किलों से भी जूझना सीख लिया है।
तुम्हें भ्रम था तो मुझे भी
ऐसा ही लगता था,
तुम्हारे बिन ये जीवन
सपना सा लगता है।
पर अब समझ में आ गया,
हर कोई जी लेता है
हर किसी के बिना,
दुनिया रुकती नहीं है किसी के  भी बिना,
हम नाहक परेशान रहते थे अब तक,
अब देखो न मैं जी रहा हूँ
जीवन के लुत्फ भी उठा रहा हूँ।
अब तो तुम्हारा हमारा
दोनों का भ्रम मिट गया
बिन तुम्हारे मेरे जीवन में
कोई पहाड़ नहीं गिर गया,
तुम बिन मेरे जीवन में
कोई फर्क तक नहीं पड़ गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921