कविता

पैगाम

आइए कुछ काम करते हैं
काम नहीं है तो पैगाम ही देते हैं,
हमारे खुद के अंदर
जितनी बुराइयां हैं,
उसे दूर करने का अभियान चलाते हैं।
पक्के नशेड़ी हैं हम तो
नशे का नुक़सान समझाते हैं,
अनपढ़ हैं तो अच्छा हो
शिक्षा का अभियान चलाते हैं।
भ्रष्ट हैं हम खुद तो
भ्रष्टाचार मुक्त का नारा बुलंद करते हैं,
राजनीति की खाल में छिपकर
गलत कामों की सरदारी कर रहे हैं हम,
राजनीति के पाक साफ करने की
बातें करेंगे हम,
लोकतंत्र का सरेआम नोच रहे हम आवरण
लोकतंत्र की मजबूती की पैगाम देंगे हम
अपने लिए कुछ और
औरों के लिए कुछ और
मापदंड अपना रहे हैं हम तो
सबके लिए एक मापदंड की बात करेंगे हम।
आइए! सब अपनी अपनी सुविधा से
पैगाम बाँटते रहें,
हम कितने गिरगिट हैं
ये पैगाम भी देते रहें।
पैगाम मेरा आप भी स्वीकार कीजिए
खुद मतदान कीजिए न कीजिए
मतदान का शोर जोरशोर खूब कीजिए,
जनता के हित में काम करने वाली
सरकार नहीं लाएंगे,
भ्रष्टाचार, अपराध और अपराधियों को
जो संरक्षण दे सकें
वैसी सरकार का चुनाव कीजिए।
पैगाम सुना दो सबको बस इतना सा
शेर की खाल ओढ़े भेड़िए सा काम कीजिए,
कौन क्या कहता है मत सुनिए
समाज, राष्ट्र जाये भाड़ में
अपने स्वार्थ के सब काम कीजिए,
लूट लूटकर अपनी तिजोरी भर लीजिए
बस यही पैगाम सबको दीजिए,
अपने इस पैगाम का पेटेंट करा लीजिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

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