पुस्तक समीक्षा

वास्तविक स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय

इसमें कोई सन्देह नहीं कि विधर्मी और विदेशी दासता से मुक्ति के लिए देश को बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस मुक्तियज्ञ में अनेक हुतात्माओं ने अपना जीवन अर्पित कर दिया था। लेकिन स्वतंत्र भारत की सरकारों द्वारा जिन लोगों को आजादी दिलवाने का श्रेय दिया गया, उनमें से अधिकांश का इनमें नाममात्र का ही योगदान था।
डॉ. विवेक आर्य द्वारा लिखित इस पुस्तक में उन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय दिया गया है, जो स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज से प्रेरित थे। वास्तविकता यह है कि आर्यसमाज द्वारा प्रेरित सेनानियों की संख्या कुल के 75 प्रतिशत से भी अधिक थी, लेकिन कांग्रेस सरकारों द्वारा स्वयं श्रेय लूटने के चक्कर में उन स्वतंत्रता सेनानियों को पूरी तरह भुला दिया गया, जिन्होंने इस यज्ञ में अपने जीवन और प्राण उत्सर्जित किये थे।
इस पुस्तक में कई ऐसे नाम भी हैं जो पहले नहीं सुने गये। इससे सिद्ध होता है कि स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक इतिहास को किसी योजना के अनुसार ही दबाया छिपाया गया है। मुख पृष्ठ पर कुछ सेनानियों के चित्र दिये गये हैं, जिनमें स्वामी दयानन्द और श्रद्धानन्द से लेकर चौ. चरण सिंह तक अनके स्वनामधन्य व्यक्ति सम्मिलित हैं।
इसी पुस्तक से हमें पता चलता है कि उदयपुर के महाराणा सज्जन सिंह तथा शाहपुरा नरेश केसर सिंह बारहट ने अंग्रेजों के शासनकाल में किस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सहायता एवं संरक्षण दिया और स्वयं भी इस यज्ञ में भाग लिया था। ये सभी राजा आर्यसमाज की विचारधारा से प्रेरित थे और स्वामी दयानन्द के शिष्य थे। इसी प्रकार काकोरी के अमर बलिदानी पं. राम प्रसाद बिस्मिल तथा लाहौर बम केस के सरदार भगत सिंह का पूरा परिवार भी आर्यसमाजी था।
पुस्तक में ऐसे क्रांतिकारियों की संक्षिप्त चर्चा ही की गयी है। इनके बारे में विस्तार से जानने के लिए इतिहास के पन्नों को उलटना पड़ेगा। मात्र 96 पृष्ठों में इनके पूर्ण इतिहास को संजोना सम्भव भी नहीं है। फिर भी यह पुस्तक इतिहास में रुचि रखने वाले अध्येताओं के लिए एक बहुमूल्य आधार का कार्य कर सकती है। इसके लेखन/संकलन के लिए डॉ. विवेक आर्य की जितनी भी प्रशंसा की जाये वह कम है।
पुस्तक की छपाई उत्तम है। लेकिन वर्तनी की गलतियाँ खटकती हैं। कई जगह नामों में एकरूपता नहीं है। पुस्तक का मूल्य नाम मात्र का है। इसके लिए प्रकाशक साधुवाद के पात्र हैं।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]