लघुकथा

सोच बदल गई

सुनीता की बेटी अंजली को हमेशां अपनी मां से शिकायत रहती कि उन्होंने उसे विदेश नही जाने दिया।जब भी कैनेडा या अमेरिका में पढ़ रहे या जॉब कर रहे किसी भी बच्चे का जिक्र होता वो अवश्य कहती देखलो सब के बच्चे जा रहे हैं एक आप ही हो जिन्होंने मुझे जाने नही दिया।क्योंकि सुनीता को हमेशां यही लगता कि जिनके बच्चे बाहर चले जाते हैं वो मां बाप अपने बुढ़ापे में अकेले रह जाते हैं और अपने आखिरी समय मे अपने बच्चों को देखने के लिए भी तरस जाते हैं।
जब सुनीता की जेठानी की बेटी कनिका की शादी भी कैनेडा के लड़के से हो गई तब भी उसने शिकायत की हालांकि वो खुद यहां भी शादी करके बहुत अच्छे परिवार में गयी थी। सुनीता उसको हमेशां यही कहती, “कोई बात नही तुम जहां हो बहुत बढ़िया हो भगवान ने तुम्हे भी तो बिल्कुल सही जगह भेजा है।”
कोविड के दिनों में अचानक से सुनीता के जेठ जी की तबियत खराब हो गयी और उनकी मृत्यु हो गयी। उन दिनों विमान सेवा बिल्कुल बंद हो चुकी थी। ना कोई बाहर से आ सकता था ना ही कोई उधर जा सकता था।
वक़्त की नजाकत ही ऐसी थी कि कनिका अपने पापा को आखिरी बार देख भी नही पाई। वो वहां रोने के सिवा कर भी क्या सकती थी बस उसको वीडियो काल करके अंतिम दर्शन करवाये गए।
उस घटना के बाद सुनीता की बेटी अंजली की सोच एक दम से ही बदल गयी अब वो हमेशां यही कहती,”मम्मी,मैं ही गलत थी.. आप और आपकी सोच बिल्कुल सही थी..!!
— रीटा मक्कड़