गीत
हर सिम्त छा गया है फिर से खु़मार जानां
आओ कि आ गया है मौसम बहार जानां
इठला रही चमन से गलियों तलक हवाएं
खुशबू से गुल की महकी ,महकी हुई फ़िजा़एं
अरमान जग उठे हैं दिल के जो सो रहे थे
माजी़ भी दे रहा है पीछे से कुछ सदाएँ
है इल्तिज़ा हमारी सुन लो पुकार जानां
आओ कि आ गया है फिर से बहार …..
धरती हुई है पीली,सरसों में आया यौवन
ओढ़े हुए हैं जैसे उजली रिदायें सहजन
आने लगी है फिर से सुर्खी पलाश में भी
मदहोश सारा जंगल,बौरा रहा है हर मन
आए किसी भी सूरत दिल को क़रार जाना
आओ कि आ गया है…
हाथों मे हाथ थामे देखेंगे तितलियों को
छेड़ेंगे मछलियों को,चूमेंगे हम गुलों को
पूछेंगे नर्म कोमल पत्तों से हाल उनका
बिखराएंगे हवा में हम अपने कहकहों को
हैं मुंतजिर हमारे गुल और खार जानां
आओ कि ,,,,,
हम भी कहेंगे तुमसे कुछ अपने दिल की बातें
तुम भी बताना अपनी,कटती हैं कैसे रातें
हर इक बहार में हम मिलने का ले के वादा
हो जाएंगे जुदा फिर ले खुशनुमा सी यादें
देंगे सदाएं तुमको हम बार बार जानां
आओ कि आ गया है ,,,
— ग़जा़ला तबस्सुम