गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बारहा देती रही हमको दुहाई महफ़िल
तू नहीं था तो मुझे रास न आई महफ़िल
रोशनी हुस्न सुख़न कुछ नहीं भाया दिल को
सिर्फ़, यादों के चरागों से सजाई महफ़िल
था यकीं ख़ुद पे, भरोसा था हुनर पे अपने
चाह शोहरत की थी जो खींच के लाई महफ़िल
तज़किरा होता रहा “वक़्त गुजारें कैसे”
रात जब बीत गई होश में आई महफ़िल
रौनकें उसके लिए जिसने ख़ुशी हो पाई
डूब कर कर्ब में  किसने भला पाई महफ़िल
सबके चेहरों पे ख़मोशी का था आलम तारी
नज़्म सुनते ही बड़े वज्द में आई  महफ़िल
— ग़ज़ाला तबस्सुम
तजकिरा = चर्चा
वज्द = खुशी ,आनंदित

ग़जाला तबस्सुम

शिक्षा,,प्रतिष्ठा (बनस्पति विज्ञान) लेखन विद्या,,ग़ज़ल, पुस्तक समीक्षा प्रकाशन,,,हमारा सरमाया,इन्नर,101 महिला ग़ज़लकार के अलावा कई और सांझा संग्रह। देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्र और पत्रिका और ब्लॉग्स में ग़ज़लें प्रकाशित। पता,,आसनसोल पश्चिम बर्दवान । (प.ब) मेल आईडी talk2tabassum@gmail.com