ग़ज़ल
कट रही जिंदगी धूप में, छाँव में
हो रहा है गुजर, प्यार के गांव में
उस शहर के कई लोग भी आ गये
वो भी महफूज़ हैं, प्यार के गांव में
अब वतन ये मेरा गुल्सिता़ं बन गया
खार भी फूल हैं प्यार के गाँव में
माँ नहीं है मगर माँ की यादें तो हैं
दिन सुहाने लगे, प्यार के गाँव में
बस कभी अब न जाएँ कहीं और हम
चैन है और सुकूँ प्यार के गाँव में
दूर जाकर वतन से मिलेगा कहाँ
जो है माटी यहाँ प्यार के गांव में
— सीमा शर्मा सरोज