अध्यात्म पर दोहे
उड़ जा पंछी उस देश, जहां न राग न द्वेष।
जँह पर कोई नहि भेद,ऐसा है वह देश।।1।।
शीतल मन्द पवन सदा, ताप नहीं उस देश।
बसिये ऐसे देश में, रोग जरा नहि शेष।।2।।
– अशर्फी लाल मिश्र
उड़ जा पंछी उस देश, जहां न राग न द्वेष।
जँह पर कोई नहि भेद,ऐसा है वह देश।।1।।
शीतल मन्द पवन सदा, ताप नहीं उस देश।
बसिये ऐसे देश में, रोग जरा नहि शेष।।2।।
– अशर्फी लाल मिश्र
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ब्रह्मलोक की कल्पना ,