कविता

मैं दौड़ रहा था.

मैं दौड़ रहा था…
अचानक…
ख़्याल आया…
क्या मैं पाऊंगा…
क्या पाये…
दौड़ने वाले…
इतिहास गवाह है…।
सिकंदर से हिटलर तक…
कोलंबस से वस्कोडिगामा तक…
आइंस्टीन से आर्कमिडीज तक…
जाना पड़ा…
खाली हाथ…
पाया वही…
जो रुका…
बुद्ध से महावीर तक…
कबीर से नानक तक…
मीरा से चैतन्य तक…
इतिहास गवाह है…।।
— मनोज शाह ‘मानस’ 

मनोज शाह 'मानस'

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