कविता

जीवन सतरंगी मांडना बने!

जीवन सतरंगी मांडना बने
नवरंगो से सजी रंगोली,
अपनेपन की बहार,
संग रहे सदा हमजोली।
छेड़ो हृदय के तार ऐसे
प्रेम की मधुर सरगम सजे,
दीप प्यार के जले,
गम का अंधियार हरे।
निर्मल हृदय में भरी रहें
दौलत स्नेह-दुलार की,
आत्मीयता के सौरभ से
महके और महकाते रहें।
रिश्तों में तरोताजगी,
आपसी मेल मिलाप रहें।
विश्वास की प्रेम डोर से
संयम,संतुलन बना रहे।
सज्जन भावना आचरण में
ऐसा मृदुल व्यवहार रहें।
परम प्रभु का मन हर्षाए
मन-मंदिर में भक्ति भाव रहें।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८